Time मेनेजमेंट

क्या आपने कभी सोचा है कि आजकल हमें समय की इतनी कमी क्यों महसूस होती है? समय पर काम ना करने या ना होने पर हम झल्ला जाते हैं, आग बबूला हो जाते हैं चिढ़ जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं, लगभग हर पल जल्दबाजी और हड़बड़ी में रहते हैं इस चक्कर में हमारा ब्लड प्रेशर तक बढ़ जाता है हमारा मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है लोगों से  हमारे संबंध तक खराब हो जाते है समय की कमी हमारे जीवन का एक अप्रिय और अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है।
                   क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे पूर्वजों को कभी टाइम मैनेजमेंट की जरूरत नहीं पड़ी, तो फिर हमें क्यों पड़ रही है ?क्या हमारे पूर्वजों को दिन में 36 घंटे मिलते थे और हमें केवल 24 घंटे ही मिल रहे हैं? मैं भी जानता हूं और आप भी जानते हैं कि ऐसा नहीं है। हर पीढ़ी को दिन में 24 घंटे ही मिलते हैं लेकिन बीसवीं सदी की शुरुआत से हमारे जीवन में समय कम पड़ने लगा है और यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बड़ी ही अजीब बात है क्योंकि मनुष्य बीसवीं सदी की शुरुआत से ही समय बचाने वाले नए-नए उपकरण बनाने में लगा है।
                   बीसवीं सदी से पहले हवाई जहाज नहीं थे, कार नहीं थी ,मोटरसाइकिल या स्कूटर भी लगभग नहीं थी, लेकिन हमारे पूर्वजों को कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी। पहले गैस सिलेंडर नहीं थे, मिक्सर, माइक्रोवेव नहीं थे, लेकिन गृहणी चूल्हे पर खाना पकाने में किसी तरह की हड़बड़ी नहीं दिखाती थी ।पहले बिजली नहीं थी, लेकिन किसी को रात भर जाकर काम करने की जरूरत भी नहीं थी ।वास्तव में तब भी ज्यादा सरल था, क्योंकि उस समय इंसान की जिंदगी घड़ी के हिसाब से नहीं चलती थी। औद्योगिक युग के बाद फैक्ट्री, ऑफिस और नौकरी का जो दौर शुरू हुआ उसने मनुष्य को घड़ी का गुलाम बना दिया है।
                    पहले जीवन सरल था और अब जीवन जटिल हो चुका है यही हमारी समस्या का मूल कारण है पहले जीवन की रफ्तार धीमी थी, लेकिन अब तेज हो चुकी है। अब हमारे जीवन में इंटरनेट आ गया हैं जो पलके झपकते ही हमें दुनिया से जोड़ देता है ।हमारे पास 4G मोबाइल है जिससे हम दुनिया में कहीं भी किसी से भी बात कर सकते हैं और उसे देख सकते हैं आधुनिक आविष्कारों ने हमारे जीवन की गति बढ़ा दी है।
                     शायद आधुनिक आविष्कार ही हमारे जीवन में समय की कमी का सबसे बड़ा कारण है ।इसकी बदौलत हम दुनिया से जुड़ गए हैं, लेकिन शायद खुद से दूर हो गए हैं।
                      यदि आप अपने जीवन में समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग को लेकर गंभीर है तो इसका एक उपाय है: यदि आप किसी भी तरह से आधुनिक आविष्कारों से मुक्ति पा ले तो आपको काफी सुविधा होगी। अर्थात मैं यहां चूल्हे पर रोटी पकाने और दिल्ली से कोलकाता तक पैदल जाने की बात नहीं कर रहा हूं मैं तो केवल यह कहना चाहता हूं कि मोबाइल इंटरनेट चैटिंग आदिं में समय कम से कम बर्बाद ही करें।

👩‍🎓Education life👩‍🎓

विद्‌यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है । यह काल एकाग्रचित्त होकर अध्ययन और ज्ञान-चिंतन का है । यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है । विद्‌यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस नींव प्रदान करने का सुनहरा अवसर है । यह चरित्र-निर्माण का समय है । यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण समय है ।

विद्‌यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्‌यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्‌यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने लगता है ।

नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्‌य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है ।

एक विद्यार्थी को हमेशा विनम्रता का भाव रखना चाहिए।विद्‌या अर्जन की चाह रखने वाला विद्‌यार्थी जब विनम्रता को धारण करता है तब उसकी राहें आसान हो जाती हैं । विनम्र होकर श्रद्धा भाव से वह गुरु के पास जाता है तो गुरु उसे सहर्ष विद्‌यादान देते हैं । वे उसे नीति ज्ञान एवं सामाजिक ज्ञान देते हैं, गणित की उलझनें सुलझाते हैं और उसके अंदर विज्ञान की समझ विकसित करते हैं । उसे भाषा का ज्ञान दिया जाता है ताकि वह अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सके । इस तरह विद्‌यार्थी जीवन सफलता और पूर्णता को प्राप्त करता हुआ प्रगतिगामी बनता है ।

विद्‌यार्थी जीवन मानवीय गुणों को अंगीभूत करने का काल है । सुख-दु:ख, हानि-लाभ, सर्दी-गर्मी से परे होकर जब विद्‌यार्थी नित्य अध्ययनशील हो जाता है तब उसका जीवन सफल हो जाता है।

विद्‌यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्‌यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्‌यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने लगता है ।

नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्‌य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है ।

एक विद्यार्थी को हमेशा विनम्रता का भाव रखना चाहिए।विद्‌या अर्जन की चाह रखने वाला विद्‌यार्थी जब विनम्रता को धारण करता है तब उसकी राहें आसान हो जाती हैं । विनम्र होकर श्रद्धा भाव से वह गुरु के पास जाता है तो गुरु उसे सहर्ष विद्‌यादान देते हैं । वे उसे नीति ज्ञान एवं सामाजिक ज्ञान देते हैं, गणित की उलझनें सुलझाते हैं और उसके अंदर विज्ञान की समझ विकसित करते हैं । उसे भाषा का ज्ञान दिया जाता है ताकि वह अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सके । इस तरह विद्‌यार्थी जीवन सफलता और पूर्णता को प्राप्त करता हुआ प्रगतिगामी बनता है ।

विद्‌यार्थी जीवन मानवीय गुणों को अंगीभूत करने का काल है । सुख-दु:ख, हानि-लाभ, सर्दी-गर्मी से परे होकर जब विद्‌यार्थी नित्य अध्ययनशील हो जाता है तब उसका जीवन सफल हो जाता है।

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